Loan EMI Rules – सुप्रीम कोर्ट का फैसला ईएमआई भरने वाले लाखों लोगों के लिए राहत भरी खबर लेकर आया है लेकिन इससे बैंकों की चिंता बढ़ गई है क्योंकि अब कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि किसी भी व्यक्ति की पहली प्राथमिकता उसके परिवार की देखभाल होगी न कि लोन चुकाना सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि कोई व्यक्ति लोन की किश्तें भर रहा है। लेकिन उसकी पत्नी और बच्चों को गुजारा भत्ता नहीं मिल रहा है तो यह कानूनी रूप से सही नहीं माना जाएगा और ऐसे मामलों में पहले परिवार के भरण-पोषण को प्राथमिकता दी जाएगी उसके बाद ही बैंक या अन्य वित्तीय संस्थाओं का कर्ज चुकाने की बात आएगी।
सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि किसी भी पति के लिए उसकी पहली जिम्मेदारी उसके बच्चों और तलाकशुदा पत्नी का ध्यान रखना है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई व्यक्ति अपनी पूर्व पत्नी या बच्चों को भरण-पोषण देने में असमर्थ होने का दावा करता है तो उसे अपनी आय और वित्तीय स्थिति का प्रमाण अदालत के समक्ष प्रस्तुत करना होगा केवल यह कह देना कि आर्थिक तंगी के कारण भरण-पोषण देना संभव नहीं है इसे स्वीकार नहीं किया जाएगा।
बैंकों की बढ़ी चिंता
इस फैसले से उन बैंकों की चिंता बढ़ गई है जो ग्राहकों को लोन देते हैं क्योंकि अब यदि कोई व्यक्ति अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के बाद ही ईएमआई चुकाने की स्थिति में रहेगा तो बैंकों को अपनी रिकवरी प्रक्रिया में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। कई वित्तीय विशेषज्ञों का मानना है कि इससे बैंकों के लिए डिफॉल्ट केस बढ़ सकते हैं क्योंकि जिन लोगों पर पहले से ही लोन का बोझ है वे अब कानूनी रूप से पहले गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य होंगे।
कौन-कौन से लोग होंगे प्रभावित
इस फैसले का सबसे ज्यादा असर उन लोगों पर पड़ेगा जो तलाकशुदा हैं और उनकी आय का एक बड़ा हिस्सा लोन की किश्तों में चला जाता है। ऐसे लोग अब पहले अपने परिवार की आर्थिक जरूरतों को पूरा करेंगे और फिर बैंक की किस्तों का भुगतान करेंगे इससे बैंक और वित्तीय संस्थानों की रिकवरी प्रक्रिया धीमी हो सकती है और कई मामलों में उन्हें लोन की राशि वापस पाने में परेशानी हो सकती है।
क्या होगा यदि पति गुजारा भत्ता नहीं देता
यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी और बच्चों को भरण-पोषण देने से इनकार करता है तो अदालत उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर गुजारा भत्ता नहीं देता तो उसकी संपत्ति कुर्क की जा सकती है और जरूरत पड़ने पर उसे बेचा भी जा सकता है ताकि उसकी पत्नी और बच्चों को गुजारा भत्ता मिल सके इसके अलावा यदि कोई व्यक्ति लंबे समय तक भुगतान नहीं करता है तो अदालत उसे जेल भेजने का भी आदेश दे सकती है।
इस फैसले का समाज पर प्रभाव
इस फैसले के बाद समाज में एक सकारात्मक संदेश जाएगा कि परिवार की देखभाल किसी भी वित्तीय दायित्व से अधिक महत्वपूर्ण है इससे उन महिलाओं और बच्चों को मदद मिलेगी जो पति द्वारा आर्थिक सहयोग न मिलने के कारण कठिनाइयों का सामना कर रहे थे हालांकि कुछ लोग इस फैसले को लेकर चिंता भी जता रहे हैं क्योंकि इससे उन लोगों की परेशानियां बढ़ सकती हैं जो पहले से ही आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं और लोन की ईएमआई भर रहे हैं।
क्या कहना है कानूनी विशेषज्ञों का
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला उन महिलाओं और बच्चों के लिए एक बड़ा राहत भरा कदम है जो पति से गुजारा भत्ता पाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। इस फैसले के बाद अब कोई भी पति केवल आर्थिक संकट का बहाना बनाकर अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता हालांकि इस फैसले से बैंकों के लिए कर्ज वसूली की प्रक्रिया मुश्किल हो सकती है और वित्तीय संस्थानों को इस नए फैसले को ध्यान में रखते हुए अपनी पॉलिसी में बदलाव करने की जरूरत होगी।
क्या इससे ईएमआई डिफॉल्ट बढ़ सकते हैं
इस फैसले के बाद बैंकों को यह डर है कि ईएमआई डिफॉल्ट के मामले बढ़ सकते हैं क्योंकि अब कई लोग कानूनी रूप से पहले अपने परिवार की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए बाध्य होंगे और यदि उनकी आय सीमित होगी तो वे बैंक लोन की ईएमआई नहीं चुका पाएंगे हालांकि यह फैसला उन लोगों के लिए बेहद राहत भरा है जो गुजारा भत्ता पाने के हकदार हैं और जिन्हें अब कानूनी रूप से प्राथमिकता दी जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से साफ हो गया है कि किसी भी व्यक्ति की पहली प्राथमिकता उसके परिवार की देखभाल होगी न कि बैंक लोन चुकाना इससे महिलाओं और बच्चों को बड़ी राहत मिलेगी जो पति द्वारा आर्थिक मदद नहीं मिलने के कारण संघर्ष कर रहे थे। हालांकि इस फैसले से बैंकों के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं क्योंकि अब वे कर्ज वसूली में पहले की तुलना में अधिक चुनौती महसूस कर सकते हैं बैंकों और वित्तीय संस्थानों को इस नए फैसले के अनुरूप अपनी पॉलिसी में बदलाव करना होगा ताकि वे कर्ज वसूली के लिए नए उपाय अपना सकें।